“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।”
अर्थात- जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है।
श्री जगदीश प्रसाद शर्मा, संस्थापक प्रधानाचार्य पर उपरोक्त श्लोक, पूरी तरह चरितार्थ होता है |
बुलंदशहर के गुलावती के निकट अजीतपुर बाग वाले गांव में 04-08-1935 को उनका जन्म हुआ | उनकी प्रारंभिक शिक्षा पिलखुआ में मास्टर श्री रघुवर दयाल जी के स्कूल पर हुई थी | यूं तो वह अपने सभी शिक्षकों के प्रति नतमस्तक रहते थे, परंतु मास्टर जी के प्रति उनकी श्रद्धा व सम्मान अनुकरणीय थी | कठिन, विपरीत व विषम परिस्थितियों में इन्होंने एम० ए०, एल०टी० किया तथा 1955 से 1957 से मुंसिपल स्कूल जूनियर हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में अपना सफर शुरू किया | 1957 से 1963 तक श्री चंडी विद्यालय इंटर कॉलेज पिलखुवा में कार्यरत रहे 1963 में प्रधानाचार्य के पद से त्यागपत्र दे दिया |
मोरगन, किंग, विराज तथा स्कॉलर के अनुसार अभिप्रेरणा से तात्पर्य एक प्रेरक तथा कर्षण बल से होता है जो खास लक्ष्य की और व्यवहार को निरंतर ले जाता है | यह कथन संस्थापक प्रधानाचार्य पर पूरी तरह चरित्त्रार्थ होता है | उन्होंने अपने 5 शिक्षक साथियों श्री महावीर प्रसाद शर्मा, श्री जलसिंह, श्री आर०डी० त्यागी, श्री रवि दत्त शर्मा व श्री जगदीश सिंह की नौकरी श्री चंडी विद्यालय इंटर कॉलेज से त्यागपत्र दिलवाकर उन्हें नए विद्यालय की स्थापना हेतु प्रेरित किया | संस्थापक पंडित नंदकिशोर शर्मा पूर्व पालिकाध्यक्ष पिलखुवा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने सपनों के विद्यालय "सर्वोदय" की आधारशिला रखी |
श्री शर्मा जी लगभग 59 वर्षों तक प्रधानाचार्य, प्रबंधक, तथा आजीवन सदस्य के रूप में विद्यालय की अविरल व निरंतर सेवा की |
1963 में प्रबंध समिति ने दानकर्ताओं और उपरोक्त कर्म योगियों के सहयोग से 9 कमरों का निर्माण किया प्रारंभ में छप्पर टीन व तिरपालका प्रयोग वर्षा को रोकने हेतु किया जाता था |
कालांतर में श्री शर्मा जी ने अपने प्रधानाचार्य एवं प्रबंधक के कार्यकाल, पिलखुआ व आसपास के उदारमना दानदाताओं के सहयोग से, 30 अन्य कक्षों का निर्माण किया | श्री शर्मा जी ख्यात विख्यात शिक्षक, कुशल प्रशासक, घोर नकल विरोधी, अनुशासन प्रिय व दृढ़प्रवत्त प्रधानाचार्य के रूप में आज भी दूर-दूर तक याद किए जाते हैं | जितना सम्मान वह अपने शिक्षकों गुरुजनों का करते थे, स्वस्थ शरीर में होते हुए भी उनके छात्र शिक्षा आज भी उन्हें उतनी श्रद्धा से ही स्मरण करते हैं |
संस्थापक प्रधानाचार्य :- श्री जगदीश प्रसाद शर्मा